ऐ मेरी जमीं महबूब मेरी, मेरी नस-नस में तेरा इश्क बहे, फीका न पड़े कभी रंग तेरा जिस्मों से निकल के खून कहे… कुछ इसी जज्बे के साथ जवानों ने करगिल युद्ध में अदम्य साहस का परिचय दिया।
ऐ मेरी जमीं महबूब मेरी, मेरी नस-नस में तेरा इश्क बहे, फीका न पड़े कभी रंग तेरा जिस्मों से निकल के खून कहे, तेरी मिट्टी में मिल जावां… कुछ इसी जज्बे के साथ लखनऊ के जवानों ने करगिल युद्ध में अदम्य साहस का परिचय दिया। 60 दिनों तक चले युद्ध के बाद पाक सैनिकों ने घुटने टेक दिए। 1999 के करगिल रण में लखनऊ के कई जांबाज शहीद हुए।
करगिल युद्ध में दुश्मनों पर 25 बम फेंक कर उनको घुटने टेकने पर मजबूर करने वाले गोरखा रेजीमेंट के राइफलमैन सुनील जंग के छावनी स्थित घर में अब माता-पिता रहते हैं। सुनील के पिता एनएन जंग रिटायर्ड सूबेदार 1971 युद्ध में शामिल हुए थे।
दादा स्व. मेजर नकुल महत 1962 के चीन के साथ युद्ध में लड़े थे। मां बीना सुनील जंग के किस्से बताते-बताते भावुक हो गईं। गोरखा रेजीमेंट में राइफलमैन सुनील जंग मई 1999 में चेहरे पर गोली लगने से 15 मई को शहीद हो गए।